क्रोध


                                                                         क्रोध

एक राजा घने जंगल में भटक गया, राजा गर्मी और प्यास से व्याकुल हो गया। इधर उधर हर जगह तलाश करने पर भी उसे कहीं पानी नही मिला।

                                     

                                           
प्यास से गला सूखा जा रहा था,तभी उसकी नजर एक वृक्ष पर पड़ी जहाँ एक डाली से टप टप करती थोड़ी -थोड़ी पानी की बून्द गिर रही थी।

 वह राजा उस वृक्ष के पास जाकर नीचे पड़े पत्तों का दोना बनाकर उन बूंदों से दोने को भरने लगा।जैसे तैसे बहुत समय लगने पर आखिर वह छोटा सा दोना भर ही गया।
       
 राजा ने प्रसन्न होते हुए जैसे ही उस पानी को पीने के लिए दोने को मुँह के पास लाया तभी वहाँ सामने बैठा हुआ एक तोता टें- टें की आवाज करता हुआ आया उस दोने को झपट्टा मार कर सामने की और बैठ गया उस दोने का पूरा पानी नीचे गिर गया।
        
 राजा निराश हुआ कि बड़ी मुश्किल से पानी नसीब हुआ और वो भी इस पक्षी ने गिरा दिया। लेकिन, अब क्या हो सकता है । ऐसा सोचकर वह वापस उस खाली दोने को भरने लगा। काफी मशक्कत के बाद आखिर वह दोना फिर भर गया।

                                     

 राजा पुनः हर्षचित्त होकर जैसे ही उस पानी को पीने लगा तो वही सामने बैठा तोता टे-टे करता हुआ आया और दोने को झपट्टा मार के गिरा कर वापस सामने बैठ गया ।

अब राजा हताशा के वशीभूत हो क्रोधित हो उठा कि मुझे जोर से प्यास लगी है ,मैं इतनी मेहनत से पानी इकट्ठा कर रहा हूँ और ये दुष्ट पक्षी मेरी सारी मेहनत को आकर गिरा देता है अब मैं इसे नही छोड़ूंगा अब ये जब वापस आएगा तो इसे खत्म कर दूंगा।
        
अब वह राजा अपने एक हाथ में दोना और दूसरे हाथ में चाबुक लेकर उस दोने को भरने लगा।काफी समय बाद उस दोने में फिर पानी भर गया।
        
अब वह तोता पुनः टे टे करता हुआ जैसे ही उस दोने को झपट्टा मारने पास आया वैसे ही राजा उस चाबुक को तोते के ऊपर दे मारा।और हो गया बेचारा तोता ढेर।लेकिन दोना भी नीचे गिर गया। 
       
राजा ने सोचा इस तोते से तो पीछा छूट गया लेकिन ऐसे बून्द -बून्द से कब वापस दोना भरूँगा कब अपनी प्यास बुझा पाउँगा इसलिए जहाँ से ये पानी टपक रहा है वहीं जाकर झट से पानी भर लूँ।
           
ऐसा सोचकर वह राजा उस डाली के पास गया, जहां से पानी टपक रहा था वहाँ जाकर राजा ने जो देखा तो उसके पाँवो के नीचे की जमीन खिसक गई।

                                             

          
उस डाल पर एक भयंकर अजगर सोया हुआ था और उस अजगर के मुँह से लार टपक रही थी राजा जिसको पानी समझ रहा था वह अजगर की जहरीली लार थी।
           
राजा के मन में पश्चॉत्ताप का समन्दर उठने लगता है, हे प्रभु ! मैने यह क्या कर दिया। जो पक्षी बार बार मुझे जहर पीने से बचा रहा था क्रोध के वशीभूत होकर मैने उसे ही मार दिया ।
         
 काश मैने सन्तों के बताये उत्तम क्षमा मार्ग को धारण किया होता,अपने क्रोध पर नियंत्रण किया होता तो मेरे हितैषी निर्दोष पक्षी की जान नही जाती।
        
 मित्रों,कभी कभी हमें लगता है, अमुक व्यक्ति हमें नाहक परेशान कर रहा है लेकिन हम उसकी भावना को समझे बिना क्रोध कर न केवल उसका बल्कि अपना भी नुकसान कर बैठते हैं।
       
 इसीलिये कहते हैं कि,क्षमा औऱ दया धारण करने वाला सच्चा वीर होता है।
         
 क्रोध वो जहर है जिसकी उत्पत्ति अज्ञानता से होती है और अंत पाश्चाताप से ही होता है।


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