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Showing posts from October, 2019

एक जैसा दंड

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                                                      *⛲एक जैसा दंड⛲* चीन का एक अमीर आदमी भेड़ पालने का धंधा करता था। वह अपनी भेड़ों के खान-पान का पूरा ध्यान रखता। धीरे-धीरे उसके बाड़े में भेड़ें इतनी बढ़ गईं कि उन्हें संभालना मुश्किल हो गया। उसने इस काम के लिए दो लड़कों को नियुक्त किया। भेड़ों को भी दो हिस्सों में बांट दिया गया और उन लड़कों से कहा गया कि वे अपने-अपने हिस्से की भेड़ों का पूरा खयाल रखेंगे। नियत समय पर मैदान में चराने के लिए ले जाएंगे तथा वापस लेकर आएंगे। एक दिन अमीर यात्रा पर निकल गया। कुछ दिनों बाद वह लौटकर आया तो उसने बाड़े में जाकर मुआयना किया। वहां भेड़ों की स्थिति देख उसे बहुत दुख हुआ। ज्यादातर भेड़ें कमजोर हो गई थीं और कुछ तो मर भी गई थीं। अमीर ने चरवाहे लड़कों को जिम्मेदार ठहराया। उसने छानबीन की कि आखिर किस वजह से भेड़ों की इतनी हानि हो गई। पता लगा कि दोनों लड़के बुरी आदतों में लगे रहते थे। एक को जुआ खेलने की आदत थी। जहां कहीं भी वह जुए की बाजी लगते देखता, वहीं दांव लगाने बैठ जाता। इस चक्कर में भेड़ें कहीं से कहीं जा पहुंचतीं और भूखी-प्यासी रहते कष्ट पातीं।      

स्वर्ग का मार्ग

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                         स्वर्ग का मार्ग मुंबई से बैंगलुरू जा रही ट्रेन में सफ़र के दौरान टीसी ने सीट के नीचे छिपी लगभग तेरह/चौदह साल की ऐक लड़की से कहा  टीसी "टिकट कहाँ है?" काँपती हुई लडकी "नहीं है साहब।" टी सी "तो गाड़ी से उतरो।"                                           इसका टिकट मैं दे रही हूँ।..........पीछे से ऐक सह यात्री ऊषा भट्टाचार्य की आवाज आई जो पेशे से प्रोफेसर थी । ऊषा जी - "तुम्हें कहाँ जाना है ?"  लड़की - "पता नहीं मैम!"  ऊषा जी - "तब मेरे साथ चलो, बैंगलोर तक!" ऊषा जी - "तुम्हारा नाम क्या है?" लड़की - "चित्रा" बैंगलुरू पहुँच कर ऊषाजी ने चित्रा को अपनी जान पहचान की ऐक स्वंयसेवी संस्था को सौंप दिया और ऐक अच्छे स्कूल में भी एडमीशन करवा दिया। जल्द ही ऊषा जी का ट्रांसफर दिल्ली हो गया जिसके कारण चित्रा से संपर्क टूट गया, कभी-कभार केवल फोन पर बात हो जाया करती थी।  करीब बीस साल बाद ऊषाजी को एक लेक्चर के लिए सेन फ्रांसिस्को (अमरीका) बुलाया गया । लेक्चर के बाद जब वह

प्रेरणा

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                                                                      प्रेरणा                        एक बार एक व्यक्ति की उसके बचपन के टीचर से मुलाकात होती है । वह उनके चरण स्पर्श कर अपना परिचय देता है। वे बड़े प्यार से पुछती है, 'अरे वाह, आप मेरे विद्यार्थी रहे है, अभी क्या करते हो, क्या बन गए हो ?' ' मैं भी एक टीचर बन गया हूं ' वह व्यक्ति बोला,' और इसकी प्रेरणा मुझे आपसे ही मिली थी जब में 7 वर्ष का था।' उस टीचर को बड़ा आश्चर्य हुआ, और वे बोली कि,' मुझे तो आपकी शक्ल भी याद नही आ रही है, उस उम्र में मुझसे कैसी प्रेरणा मिली थी ??'                                                                       वो व्यक्ति कहने लगा कि .... 'यदि आपको याद हो, जब में चौथी क्लास में पढ़ता था, तब एक दिन सुबह सुबह मेरे सहपाठी ने उस दिन उसकी महंगी घड़ी  चोरी होने की आपसे शिकायत की थी।  आपने क्लास का दरवाज़ा बन्द करवाया और सभी बच्चो को क्लास में पीछे एक साथ लाइन में खड़ा होने को कहा था। फिर आपने सभी बच्चों की जेबें टटोली थी। मेरे जेब से आपको

बाघ का अहंकार

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                                                          बाघ का अहंकार एक गाय घास चरने के लिए एक जंगल में चली गई। शाम ढलने के करीब थी। उसने देखा कि एक बाघ उसकी तरफ दबे पांव बढ़ रहा है।                                          वह डर के मारे इधर-उधर भागने लगी। वह बाघ भी उसके पीछे दौड़ने लगा। दौड़ते हुए गाय को सामने एक तालाब दिखाई दिया। घबराई हुई गाय उस तालाब के अंदर घुस गई।  वह बाघ भी उसका पीछा करते हुए तालाब के अंदर घुस गया। तब उन्होंने देखा कि वह तालाब बहुत गहरा नहीं था। उसमें पानी कम था और वह कीचड़ से भरा हुआ था।                                उन दोनों के बीच की दूरी काफी कम हुई थी। लेकिन अब वह कुछ नहीं कर पा रहे थे। वह गाय उस कीचड  के अंदर धीरे-धीरे धंसने लगी।                                              वह बाघ भी उसके पास होते हुए भी उसे पकड़ नहीं सका। वह भी धीरे-धीरे कीचड़ के अंदर धंसने लगा। दोनों ही करीब-करीब गले तक उस कीचड़ के अंदर फस गए। दोनों हिल भी नहीं पा रहे थे। गाय के करीब होने के बावजूद वह बाघ उसे पकड़ नहीं पा रहा था।