सच्चा सुख


                                                                      सच्चा सुख 

एक युवक जो कि एक विश्वविद्यालय का विद्यार्थी था, एक दिन शाम के समय एक प्रोफ़ेसर साहब के साथ 
टहलने निकला हुआ था। यह प्रोफ़ेसर साहब सभी विद्यार्थियों के चहेते थे और विद्यार्थी भी उनकी दयालुता के 
कारण उनका बहुत आदर करते थे। टहलते-टहलते वह विद्यार्थी प्रोफ़ेसर साहब के साथ काफ़ी दूर तक निकल 
गया और तभी उन दोनों की दृष्टि एक जोड़ी फटे हुए जूतों पर पड़ी। उन दोनों को वह जूते एक गरीब किसान के 
लगे जो कि पास के ही किसी खेत में मजदूरी कर रहा था और बस आने ही वाला था। 
वह विद्यार्थी प्रोफ़ेसर साहब की ओर मुड़ा और बोला, " आइये इन जूतों को छुपा देते हैं। और फिर हम लोग इन 
झाड़ियों के पीछे छुप जाते हैं। जब वह किसान काम करके वापस आएगा और अपने जूतों को ढूंढेगा तो उसे 
परेशान होकर इधर-उधर ढूंढ़ता देखने पर कितना मज़ा आएगा।"
                                           
इस पर प्रोफेसर साहब बोले, " मेरे प्यारे दोस्त ! हमें कभी भी किसी गरीब को दुखी करके ख़ुश नहीं होने चाहिए।
तुम तो काफ़ी अमीर हो और तुम्हें अच्छा ख़ासा जेब खर्च मिलता है। तुम एक काम करो ! इन दोनों जूतों में 
तुम बीस-बीस रुपये डाल  दो। और फ़िर हम लोग देखेंगे कि जब किसान को यह पैसा मिलेगा तो तुम्हें कैसा 
महसूस होता है। " उस विद्यार्थी ने ठीक वैसा ही किया और फ़िर दोनों पास की एक झाड़ी के पीछे छुप गए।
                                         
जल्दी ही उस गरीब किसान का काम समाप्त हो गया और वह लौट कर वहीँ आया जहाँ उसने अपने फटे पुराने 
जूते उतारे थे। जैसे ही उसने एक पैर जूते में डाला, उसे लगा कि पैर में कोई कागज़ सा छू रहा है। जब उसने 
जूते में हाथ डालकर देखा तो एक बीस रुपये का नोट पाया। उसके चेहरे पर आश्चर्य के भाव स्पष्ट रूप से दिख 
रहे थे। उसने बीस रुपये के नोट को उलट पलट के देखा कि कहीं वह नकली तो नहीं था। फिर उसने चारों  ओर देखा कि शायद कोई दिख जाये, किन्तु कोई दिखाई न दिया। अब उसने वह नोट अपनी जेब में रख लिया 
और अपना पैर दूसरे जूते में डाला, किन्तु दूसरे में भी एक और नोट पाकर उसका आश्चर्य दुगना हो गया।
अब उसका अपनी भावनाओं को नियंत्रित करना अत्यंत कठिन हो गया। वह अपने घुटनों के बल बैठ गया
और उसके दोनों हाथ अकस्मात् आकाश की और उठ गए। उसने आकाश की ओर देखा और ईश्वर के प्रति
कृतज्ञता और धन्यवाद के शब्द मानो बरबस ही उसके मुख से फूट निकले। वह दिल खोलकर बोला अपनी 
अस्वस्थ और असहाय पत्नी के बारे में जिसका अब वह इलाज करा पायेगा। वह बोला अपने भूख से बिलबिलाते 
बच्चों के बारे में जिनको वह आज भरपेट भोजन करवा पाएगा।
                                           
झाड़ियों  के पीछे वह विद्यार्थी और प्रोफ़ेसर सब कुछ सुन रहे थे और उन दोनों की आँखों में ख़ुशी के आँसू थे।
प्रोफ़ेसर ने विद्यार्थी से कहा, "अब बताओ यदि तुम उस गरीब किसान के फटे जूते छुपा देते तब तुम्हें ज़्यादा
ख़ुशी मिलती या अब ज़्यादा ख़ुशी मिलती ?"
इस पर वह विद्यार्थी बोला, "आज आपने मुझे एक ऐसी शिक्षा दी है जो की मैं जीवन में कभी नहीं भूल पाउँगा।
और, यह मैं यह पहले कभी नहीं समझ पाया था कि, जो सुख देने में है वह लेने में नहीं।"

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Comments

Unknown said…
VERY NICE STORY..
ALSO READ SOME GREAT STORIES HERE.
http://www.k-positive.in
!!अगर सभी इसी कहानी की तरह सोचे तो देश से गरीबी कम हो जायेगी और हमारा देश उन्नति कर्र ओर अग्रसर होगा !!
Trigent said…
दूसरों की मदद करके जो शांति और सुख मिलता है, वो अनन्त काल तक चलता है।
http://www.hindivachan.com/
Unknown said…
Great story
We have to learn a lot from this story

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