माता का निर्माण

                                    माता का निर्माण 

 

जब ईश्वर माता का निर्माण कर रहे थे , तो उन्हें उसमें बहुत समय लग रहा था।एक देवदूत रोज़ देखता था कि भगवान  माता का निर्माण कर रहे हैं और आज छठा दिन है, और ईश्वर रात तक लगे हैं और ओवरटाइम कर रहे हैं।यह देखकर वह देवदूत बोला ,"हे ईश्वर!आप इस पर इतना अधिक समय क्यों लगा रहे हैं ?"

                                               



यह सुनकर ईश्वर ने जवाब दिया ," क्या तुमने इसकी Specification Sheet देखी है ? इसके भीतर बदले जा सकने वाले २०० से भी अधिक Parts होने चाहियें। 

~उसमें कम  से कम  भोजन को भी अधिक से अधिक बच्चों में बाँटने की क्षमता होनी चाहिए , जो भोजन बचे उसे ख़ुशी-ख़ुशी स्वयं खा लेने की क्षमता होनी चाहिए। 

~उसकी गोद ऐसी होनी चाहिए कि सभी बच्चे एक साथ समां सकेंऔर जब वह खड़ी हो जाए ,तो वह गोद गायब हो जाए। 

~ उसके पास एक ऐसा चुम्बन होना चाहिए जो बच्चों को किसी भी कष्ट से उबार सके -चाहे वह घुटने पर लगी चोट का कष्ट हो या टूटे हुए दिल का दर्द। माँ का एक चुम्बन हर प्रकार के दुःख दर्द के लिए पर्याप्त हो। 

"फिर , उसके हाथ मुझे इस प्रकार के बनाने हैं जो कई हाथों के बराबर हों। " ईश्वर ने कहा ,"ऐसा क्यों" देवदूत बोला।                                                

ऐसा इसलिए की वो एक साथ कई बच्चों को गले लगा सके। और हां ,उसका आलिंगन ऐसा हो जो कि बच्चों के बड़े से बड़े दुःख दर्द को चुटकियों में भुला सके। और ,यह सब सिर्फ दो हाथों से संभव हो सके। 

इस पर देवदूत बोला ," केवल दो हाथों से इतना कुछ !फिर तो आप एक दो दिन और ले लीजिये 'माता ' का निर्माण करने के लिए। "

ईश्वर बोले ," नहीं ,नहीं ! मुझे तो अपनी इस कृति का निर्माण आज ही पूर्ण करना है, चाहे कुछ भी हो जाए। "

~ जब वह बीमार हो तो स्वयं को अपने आत्मबल से स्वयं ही ठीक कर ले....... और हाँ ,उसमे १८ घंटे कार्य करने की क्षमता  भी हो। यह सुनकर वह देवदूत स्तब्ध रह गया। उससे न रहा गया ,उसने जाकर माता को छूकर देखने का प्रयास किया और बोला ,"प्रभु! यह तो बहुत नाज़ुक है,यह इतना कुछ कैसे कर पाएगी?"

इस पर प्रभु बोले ," मैंने इसे बाहर से नाज़ुक और कोमल बनाया है ,किन्तु भीतर से यह बहुत मज़बूत है। तुम सोच भी नहीं सकते ,यह क्या -क्या बर्दाश्त कर सकती है और क्या-क्या करके दुनिया को दिखा सकती है। "

                                           

फिर ,देवदूत ने कुछ देखा और उसके गाल को छुआ और  बोला ,"प्रभु ! लगता है आपने कुछ दोषपूर्ण मॉडल बना दिया है। यह तो लीक कर रहा है, मेरा हाथ गीला हो गया है। आप इसमें कुछ ज़्यादा ही गुण डालने का प्रयास कर रहे हैं, यह उसी का परिणाम है। "

प्रभु बोले ," बेटा ! यह लीक नहीं कर रहा ,यह तो इसके आंसू हैं। "

इस पर देवदूत ने पूछा," यह आंसू आपने  क्यों बनाये ?"

प्रभु ने कहा ," आंसू इसका अपनी ख़ुशी को व्यक्त करने का ज़रिया  है ,अपना दुःख व्यक्त करने का ज़रिया   है ,अपनी निराशा व्यक्त करने का ज़रिया है , अपना अकेलापन व्यक्त करने का ज़रिया  है ,अपना सम्मान व्यक्त करने का ज़रिया  है। "

इस पर  देवदूत बोला ," प्रभु ! आप विलक्षण हैं ,आपने माँ के लिए आंसुओं का निर्माण भी बहुत सोच समझ कर किया है। 

हमारे शास्त्रों में माता के महत्व को बहुत सुंदरता के साथ व्यक्त किया गया है :

~ "माता निर्माता भवति" अर्थात ,माता ही संतान का निर्माण करती है।

~ शतपथब्राह्मण का एक श्लोक कहता है कि ," मातृमान ,पितृमान 

,आचार्यवान पुरुषो वेदः। " अर्थात ,तीन लोगों के प्रति ह्रदय में श्रद्धा होनी चाहिए -माता ,पिता एवं आचार्य। 

~ "नास्ति मातृसमाच्छाया ,नास्तिमातृसमागतिः। नास्तिमातृसमंत्रणाम ,नास्तिमातृसमाप्रियः।।"

अर्थात ,माता के सामान कोई छाया नहीं है ,माता के सामान कोई सहारा नहीं है। माता के सामान कोई रक्षक नहीं है और माता के सामान इस संसार में कोई प्रिय नहीं है। 

अतः हमें जीवन में सदा माता का सम्मान करना चाहिए। ईश्वर के अतिरिक्त " माता " ही हमारे जीवन में सबसे महत्वपूर्ण है।


 



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