एक जैसा दंड
*⛲एक जैसा दंड⛲*
चीन का एक अमीर आदमी भेड़ पालने का धंधा करता था। वह अपनी भेड़ों के खान-पान का पूरा ध्यान रखता। धीरे-धीरे उसके बाड़े में भेड़ें इतनी बढ़ गईं कि उन्हें संभालना मुश्किल हो गया। उसने इस काम के लिए दो लड़कों को नियुक्त किया। भेड़ों को भी दो हिस्सों में बांट दिया गया और उन लड़कों से कहा गया कि वे अपने-अपने हिस्से की भेड़ों का पूरा खयाल रखेंगे। नियत समय पर मैदान में चराने के लिए ले जाएंगे तथा वापस लेकर आएंगे।
एक दिन अमीर यात्रा पर निकल गया। कुछ दिनों बाद वह लौटकर आया तो उसने बाड़े में जाकर मुआयना किया। वहां भेड़ों की स्थिति देख उसे बहुत दुख हुआ। ज्यादातर भेड़ें कमजोर हो गई थीं और कुछ तो मर भी गई थीं। अमीर ने चरवाहे लड़कों को जिम्मेदार ठहराया। उसने छानबीन की कि आखिर किस वजह से भेड़ों की इतनी हानि हो गई। पता लगा कि दोनों लड़के बुरी आदतों में लगे रहते थे। एक को जुआ खेलने की आदत थी। जहां कहीं भी वह जुए की बाजी लगते देखता, वहीं दांव लगाने बैठ जाता। इस चक्कर में भेड़ें कहीं से कहीं जा पहुंचतीं और भूखी-प्यासी रहते कष्ट पातीं।
दूसरा लड़का पूजा-पाठी था। वह भी भेड़ों पर ज्यादा ध्यान नहीं देता था। अमीर उन दोनों लड़कों को पकड़कर एक न्यायाधीश के समक्ष ले गया। न्यायाधीश ने उनकी बातें गौर से सुनीं और दोनों को समान रूप से दंडित किया। यह सुनकर दूसरा लड़का न्यायाधीश से बोला- 'माना कि मुझसे चूक हुई। लेकिन मैं जुआरी तो नहीं हूं। मैं तो पूजा-पाठी सदाचारी हूं। मुझे जुआरी जैसा दंड क्यों मिल रहा है।' न्यायाधीश ने कहा- 'कर्तव्यपालन की उपेक्षा के लिए तुम भी उसके समान ही दोषी हो। कर्तव्य-भाव के बगैर जो किया जाता है, वह व्यसन है। इसीलिए समान दंड दिया गया है ।
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