विश्वास
यह कहानी एक ऐसे आदमी ने सुनायी है जो एक लम्बी हवाई यात्रा करके आ रहा था।
हवाई यात्रा ठीक ठाक चल रही थी तभी एक उदघोष हुआ कि कृपया अपनी सीट बेल्ट बांध लें क्योंकि कुछ
समस्या आ सकती है। तभी एक और उदघोष हुआ कि , " मौसम खराब होने के कारण कुछ गड़बड़ी होने की
सम्भावना है अतः हम आपको पेय पदार्थ नहीं दे पाएंगे। कृपया अपनी सीट बेल्ट्स कस कर बांध लें। "
जब उस व्यक्ति ने अपने चारों ओर अन्य यात्रियों की ओर देखा तो पाया कि वे किसी अनिष्ट की आशंका से
थोड़े भयभीत लग रहे थे। कुछ समय के पश्चात फिर एक उदघोष हुआ, " क्षमा करें, आगे मौसम ख़राब है अतः
हम आपको भोजन की सेवा नहीं दे सकेंगे। कृप्या अपनी सीट बेल्ट बांध लें ।"
और फिर एक तूफ़ान सा आ गया। बिजली कड़कने और गरजने की आवाजें हवाई जहाज़ के अन्दर तक
सुनायी देने लगीं। बाहर का ख़राब मौसम और तूफ़ान भी भीतर से दिखाई दे रहा था।
हवाई जहाज़ एक छोटे खिलौने की तरह उछलने लगा। कभी तो जहाज़ हवा के साथ सीधा
हवाई जहाज़ एक छोटे खिलौने की तरह उछलने लगा। कभी तो जहाज़ हवा के साथ सीधा
वह व्यक्ति बोला की अब वह भी अत्यंत भयभीत हो रहा था और सोंच रहा था कि यह जहाज़ इस तूफ़ान से सुरक्षित
निकल पायेगा अथवा नहीं। फिर जब उसने अपने चारों ओर अन्य यात्रियों की ओर देखा तो उसने पाया कि सब
ओर भय और असुरक्षा का सा माहौल बन चुका था। तभी उसने देखा कि एक सीट पर एक छोटी सी लड़की सीट पर पैर ऊपर करके आराम से बैठी एक पुस्तक पढ़ने में डूबी हुयी थी।
उसके चेहरे पर चिंता की कोई शिकन तक नहीं थी। वह कभी-कभी कुछ क्षड़ो के लिए अपनी ऑंखें बंद करती
और फिर आराम से पढने लग जाती थी। जब सभी यात्री भयाक्रांत हो रहे थे, जहाज़ उछल रहा था तब भी यह
उस व्यक्ति को अपनी आँखों पर विश्वास न हुआ और जब वह जहाज़ अन्ततः सुरक्षित उतर गया। वह व्यक्ति सीधे उस लड़की के पास गया और उसने उससे पूँछा, कि इतनी खतरनाक परिस्तिथियों में भी वह बिलकुल नहीं
डरी और एकदम शान्त किस प्रकार बनी हुयी थी। इस पर उस लड़की ने उत्तर दिया,
" सर मेरे पिताजी इस विमान के चालक थे और वो मुझे घर ले जा रहे थे। "
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