दो मेंढक
दो मेंढक
मेंढकों का एक समूह यात्रा कर रहा था और एक जंगल से निकला। तभी रास्ते में उनमें से दो मेंढक एक बहुत
उन दोनों मेंढकों ने बाकी मेंढकों की बातों पर ध्यान न देते हुए पूरी शक्ति से ऊपर आने का प्रयास जारी रखा।
बाकी मेंढकों ने उन दोनों मेंढकों को यह बताना जारी रखा कि वे ऊपर आने का प्रयास व्यर्थ में ही कर रहे हैं, और इससे कोई लाभ होने वाला नहीं है।
अन्ततः उन दोनों में से एक मेंढक ने बाकी मेंढकों के कहने में आकर ऊपर आने का प्रयास करना बन्द कर दिया और गहरे गड्ढे में गिरकर उसने प्राण त्याग दिए।
किन्तु, दूसरे मेंढक ने गहरे गड्ढे से बाहर आने के प्रयास जारी रखे और जितनी ताक़त से वह ऊपर की ओर
कूद सकता था, वह कूदता रहा। फ़िर से बाक़ी मेंढकों ने उसे चिल्ला-चिल्ला कर मना करना शुरू कर दिया कि
वह व्यर्थ में ऊपर आने के प्रयास न करें। किन्तु, ऐसा लगता था जैसे कि यह मेंढक किसी और मिट्टी का बना
हुआ था। उसने तो और अधिक ताक़त के साथ ऊपर उछलना शुरू कर दिया और अन्ततःवह उस गहरे गड्ढे से
बाहर आ गया। उसके बाहर आते ही बाकी सब मेंढकों ने उसे चारों ओर से घेर लिया और पूँछा , " क्या तुम सुन नहीं रहे थे, जब हम तुम्हें ऊपर आने के प्रयास से मना कर रहे थे?" इस पर उस मेंढक ने बाकी सभी मेंढकों को इशारे से समझाया कि वह बहरा था, वह तो सुन ही नहीं सकता था।
और तो और , बाकी मेंढकों के हाव-भाव और इशारों से वह यह समझा कि बाकी सारे मेंढक उसे ऊपर की ओर आने के लिए उत्साहित कर रहे थे, प्रेरित कर रहे थे।
इस कहानी से हमें निम्नलिखित शिक्षाएं मिलती हैं :
मेंढकों का एक समूह यात्रा कर रहा था और एक जंगल से निकला। तभी रास्ते में उनमें से दो मेंढक एक बहुत
गहरे गड्ढे में गिर गए। जब बाकी मेंढकों ने देखा कि गड्ढा तो बहुत गहरा था, तो उन्होंने उन दोनों मेंढकों को
चिल्ला कर कहा कि वे तो अब अपने को मरा हुआ ही समझें।उन दोनों मेंढकों ने बाकी मेंढकों की बातों पर ध्यान न देते हुए पूरी शक्ति से ऊपर आने का प्रयास जारी रखा।
बाकी मेंढकों ने उन दोनों मेंढकों को यह बताना जारी रखा कि वे ऊपर आने का प्रयास व्यर्थ में ही कर रहे हैं, और इससे कोई लाभ होने वाला नहीं है।
अन्ततः उन दोनों में से एक मेंढक ने बाकी मेंढकों के कहने में आकर ऊपर आने का प्रयास करना बन्द कर दिया और गहरे गड्ढे में गिरकर उसने प्राण त्याग दिए।
किन्तु, दूसरे मेंढक ने गहरे गड्ढे से बाहर आने के प्रयास जारी रखे और जितनी ताक़त से वह ऊपर की ओर
कूद सकता था, वह कूदता रहा। फ़िर से बाक़ी मेंढकों ने उसे चिल्ला-चिल्ला कर मना करना शुरू कर दिया कि
वह व्यर्थ में ऊपर आने के प्रयास न करें। किन्तु, ऐसा लगता था जैसे कि यह मेंढक किसी और मिट्टी का बना
हुआ था। उसने तो और अधिक ताक़त के साथ ऊपर उछलना शुरू कर दिया और अन्ततःवह उस गहरे गड्ढे से
बाहर आ गया। उसके बाहर आते ही बाकी सब मेंढकों ने उसे चारों ओर से घेर लिया और पूँछा , " क्या तुम सुन नहीं रहे थे, जब हम तुम्हें ऊपर आने के प्रयास से मना कर रहे थे?" इस पर उस मेंढक ने बाकी सभी मेंढकों को इशारे से समझाया कि वह बहरा था, वह तो सुन ही नहीं सकता था।
और तो और , बाकी मेंढकों के हाव-भाव और इशारों से वह यह समझा कि बाकी सारे मेंढक उसे ऊपर की ओर आने के लिए उत्साहित कर रहे थे, प्रेरित कर रहे थे।
इस कहानी से हमें निम्नलिखित शिक्षाएं मिलती हैं :
1. इस जिव्हा में जीवन और मरण की शक्ति है। यदि कोई निराश या हताश है तो कुछ प्रेरणादायक शब्द या
उत्साह से भरे हुए आशाजनक शब्द उस व्यक्ति की निराशा समाप्त करके उसके जीवन में खुशियाँ भर
सकते हैं।
2. यदि कोई पहले से निराश या हताश है और यदि कोई उससे निराश से भरे शब्द या निरुत्साहित करने
वाली बातें करता है तो इससे उसकी जीवन लीला तक समाप्त हो सकती है
अतः कुछ भी बोलने से पहले सोचो तुम्हारे बोले हुए शब्द दूसरों के जीवन में खुशियाँ भरने जा रहे हैं या उनकी
खुशियाँ छीनने जा रहे हैं :
3. सबसे महत्त्वपूर्ण शिक्षा जो कि इस कहानी के माध्यम से मिलती है, वह यह है कि तुम चाहे जितनी भी
निराशाजनक स्थिति में क्यों न हो, कभी भी दूसरों के निराशाजनक व निरुत्साहित करने वाले वचनों से
प्रभावित न हो और इन पर बिल्कुल ध्यान न दो। सदैव यही सोचो कि तुम अपनी परिस्तिथियों को पहले से बेहतर और बेहतर ही बनाना है और इसके लिए सदैव अथक प्रयास
करते रहो। तुम्हें अवश्य सफलता मिलेगी।
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